लघुकथा समवाय यह समूह बनाने की जरुरत शायद इसलिए भी है कि आज जैसे कहानियों के इस दौर में लघुकथाओं पर एक संकट सा आ गया जान पड़ता है।मेरी कोशिश है कि हर वो शख्स जो अपने अनुभव को कथा खासकर लघुकथा में रूपांतरित करने का हुनर जानता हैं। वह यहाँ इस ब्लॉग पर उस अनुभव को चस्पा करें। हमें अपनी लघु कथा भेजे। हमसे संपर्क करे। लेकिन इस योजना के लिए ज़रूरी है कि आप अपनी मौलिक लघुकथाएँ हमें भेजें। हमारा ईमेल आईडी है tarunguptadu@gmail.com dr.tarundu@gmail.com Mob :- 09013458181
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मंगलवार, 18 सितंबर 2012
प्रेम गली नहीं सांकरी - माया मृग
"तुमने कहा, "कहां गया वो पहले वाला प्यार...वो प्रेम...।"
पता नहीं.....उलाहना दे रही हो कि रखे की जगह पूछ रही हो....
....मुझे क्या पता तुम ही रख देती हो सब कुछ इधर उधर कहीं....। बीच रास्ते कहीं गिर ना गया हो...ठहरो, देख आता हूं...जिस रास्ते से आता है, उसी से लौट भी जाता है कई बार....कहीं कोई पैरों का निशान भर दिख जाए....बस...ढूंढ लूंगा...। अच्छा एक बार वो आला देख लेती....उस खिड़की के पास, जहां से तुम आते-जाते देखा करती थीं मुझे....हो सकता है मैंने ही कहीं देखा हो....मैं भी तो चीजें रखकर भूल जाता हूं आजकल....."
(माया मृग की वॉल से साभार)
पूरी संभावना है कि यह वक्तव्य माया मृग जी ने लघुकथा के रूप में न लिखें हों, लेकिन मुझे इमें एक लघुकथा दिखी सो यहाँ चेप दी। बाकि का हक़ आपका। - तरुण
पूरी संभावना है कि यह वक्तव्य माया मृग जी ने लघुकथा के रूप में न लिखें हों, लेकिन मुझे इमें एक लघुकथा दिखी सो यहाँ चेप दी। बाकि का हक़ आपका। - तरुण
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