उस रात नींद कहीं उचट गई थी,
ऐसा अक्सर होता था मेरे साथ। पर उस दिन कुछ ज्यादा ही देर तक जागा रहा। आँखें बंद
कर देर तक बिस्तर पर पड़ा रहा, पर दिमाग जग रहा था। दिल में धड़कन नहीं कुछ और था
जो बज रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या है मैं क्यों इतना बुझा-बुझा महसूस कर
रहा हूँ। यह कल की रात थी। कल हमें उसने मिलने के लिए बुलाया था। वह आई हम देर तक
मैक-डी में बैठे रहे। उसने आते ही पहले मिठाई का डिब्बा आगे कर दिया फिर अपनी
उंगली, जिसमें उसकी सगाई की अंगूठी थी। मैंने पूछा डायमण्ड की है? उसके चेहरे की
मुस्कराहट थोड़ी और बढ़ गई। मुझे लगा जैसे वो यही जताना चाहती है। कुछ देर बाद
उसने अपना कैमरा निकाला और अपनी रिंग सैरेमनी की तस्वीरें दिखाने लगी, तब मुझे
पहली बार महसूस हुआ कि उसने आज की मीटिंग के लिए बड़ी प्लानिंग की है।
तस्वीरों को देखते हुए मैं
काफी देर तक चुप रहा शायद उस वक्त मैं बहुत बोलना चाहता था। वो अंदर से बहुत खुश
थी पर ऊपर से ऐसा न दिखे इसी जुगत में लगी थी। हर बार की तरह मैं फिर से फ्लैश बैक
में चला गया जहाँ उसका एक अदद जामनी रंग का घुटनों से नीचे तक का गर्म सूट (जिसे
वो हफ्ते में चार दिन पहनती), टूटी सैंडल और चेहरे की मासूमियत कॉलेज के सामने के
ग्राउंड में धूप सेंकने आया करते थे। कभी कभी सोचता हूँ क्या जिंदगी सिर्फ
फ्लैश-बैक में जाने और वापस लौटने का नाम है?