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शनिवार, 7 जुलाई 2012

वैशाली अपनी नगरवधू का इंतज़ार नहीं करती - रवीश कुमार

  • लघुकथा समवाय के ब्लॉग पर रवीश कुमार की यह पहली लघुकथा है। जिसे वे लघु प्रेम कथा(लप्रेक) कहना ज्यादा पसंद करते हैं। जिसकी शुरुआत दरअसल फेसबुक पर ही पहले पहल हुई। अगर बहुत न माना जाए तो रवीश फेसबुक पर लप्रेक के संस्थापक हैं। जिनकी देखादेखी हम जैसों ने भी फेसबुक पर ही लघुकथा लिखने की कोशिश की, यह कोशिश ही वास्तव में  हमारे सामने इस ब्लॉग और लघुकथा समवाय के फेसबुक समूह के रूप में उपस्थित है। रवीश की यह लघुकथा हमें विनीत के सौजन्य से मिली, उन्होंने ही इसे फेसबुक के लघुकथा पेज पर चस्पा किया इसके लिए उनका साधुवाद। - तरुण (मॉडरेटर)
    सेक्टर फोर मार्केट का चौराहा तमाम झूठे वादों के उतरने चढ़ने का गवाह रहा है । हम भी एक दिन यहीं किसी होर्डिंग में टांग दिये जायेंगे । वैशाली अपनी नगरवधू का इंतज़ार नहीं करती । आम्रपाली नाम की इमारत बनाने वाले ने प्रॉपर्टी के सौदे में ख़ूब बनाए । नगरवधू अपने शहर को कंधे पे लादे उस वैशाली से इस वैशाली आ गई । वो अब कारपोरेशन के चुनाव में बब्बू सिंह की वधू बनकर वोट माँग रही है । और तुम क्या कर रहे हो ? मैं तो दर्ज कर रहा हूं । हमारे सपने ? नहीं जर्जर वैशाली को ।

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