लघुकथा समवाय के ब्लॉग पर रवीश कुमार की यह पहली लघुकथा है। जिसे वे लघु प्रेम कथा(लप्रेक) कहना ज्यादा पसंद करते हैं। जिसकी शुरुआत दरअसल फेसबुक पर ही पहले पहल हुई। अगर बहुत न माना जाए तो रवीश फेसबुक पर लप्रेक के संस्थापक हैं। जिनकी देखादेखी हम जैसों ने भी फेसबुक पर ही लघुकथा लिखने की कोशिश की, यह कोशिश ही वास्तव में हमारे सामने इस ब्लॉग और लघुकथा समवाय के फेसबुक समूह के रूप में उपस्थित है। रवीश की यह लघुकथा हमें विनीत के सौजन्य से मिली, उन्होंने ही इसे फेसबुक के लघुकथा पेज पर चस्पा किया इसके लिए उनका साधुवाद। - तरुण (मॉडरेटर)
लघुकथा समवाय यह समूह बनाने की जरुरत शायद इसलिए भी है कि आज जैसे कहानियों के इस दौर में लघुकथाओं पर एक संकट सा आ गया जान पड़ता है।मेरी कोशिश है कि हर वो शख्स जो अपने अनुभव को कथा खासकर लघुकथा में रूपांतरित करने का हुनर जानता हैं। वह यहाँ इस ब्लॉग पर उस अनुभव को चस्पा करें। हमें अपनी लघु कथा भेजे। हमसे संपर्क करे। लेकिन इस योजना के लिए ज़रूरी है कि आप अपनी मौलिक लघुकथाएँ हमें भेजें। हमारा ईमेल आईडी है tarunguptadu@gmail.com dr.tarundu@gmail.com Mob :- 09013458181
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शनिवार, 7 जुलाई 2012
वैशाली अपनी नगरवधू का इंतज़ार नहीं करती - रवीश कुमार
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