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शनिवार, 30 जून 2012


जातिय गाली - विक्रम कुमार

रात्री के दो बज रहे थे। दिल्ली के अनुसूचित जाति-जनजाति छात्रावास सहित आसपास का सारा वातावरण शात था। अचानक वातावरण की शांति को भंग करते हुए आवाज आई-
‘गार्ड साहब, गार्ड साहब गेट खोलिए। मिश्रा जी, मिश्रा जी गेट खोलिए।’
गेट रात्री के दस बजे तक गेट बंद हो जाने के कारण गार्ड साहब गहरी नींद में सो रहे थे। अचानक जगाए जाने के कारण गुस्से में सवाल पूछ बैठे - ‘‘ कहां से आ रहे हो ? ये समय है छात्रावास में आने का? क्या समझ रखा है छात्रावास को ? कल अधीक्षक से शिकायत करूंगा।’’ ठीक है, ठीक है कर देना शिकायत। अभी जल्दी से दरवाजा खोलो - एक छात्र बोला। गार्ड साहब कुढ़ते हुए दरवाजा खोलें और
धीमे स्वर मं फिर बोलें - ‘‘ साले चमार, पढ़ते-लिखते हैं नहीं और फ्री का छात्रावास कब्जा लेते हैं।’’
मित्र गार्ड द्वारा कहे वाक्य सुनकर चुपचाप हॉस्टल में चला गया। गार्ड दरवाजा बंद करने में व्यस्त हो गया। कुछ देर बाद सात लड़के गार्ड के पास आए और उन पर ताबड़तोड़ डण्डे बरसाने लगे। गार्ड चिल्लाता रहा और लड़के उन्हें पीटते रहें। शोर-शराबे से छात्रावास के सभी लड़के इक्टठा हो गए। पुलिस भी आ गई। गार्ड ने पुलिस से कहा - ‘ये लड़के रात मं चोरी करने जाते है और देर से लौटते हैं। दरवाजा जबरदस्ती खुलवाते हैं।’ पुलिस ने लड़कां से पूछा ‘क्यों मारे हो गार्ड को ?’ मारने वाले लड़के ने कहा -‘किस जाति के हैं आप ?’
पुलिस वाला गुस्से में आ गया और बोला -‘क्या बदतमीजी है, अभी डंडे लगाउॅंगा और चोरी के इल्जाम मं बंद कर दूंगा। सारी हेकड़ी निकल जाएगी।’
लड़के ने कहा - आपसे सिर्फ आपकी जाति के बारे में पूछा तो आप इतने क्रोधित हो गये। इसने तो मुझे मेरी पूरी जाति के लोगों को गाली दिया।तब भी मैं क्या इसकी आरती उतारता ?’

रविवार, 24 जून 2012

मुर्गी की टांग

नौसीखिए गुलशन ने आव देखा न ताव बस बाइक भगा दी और घर की तरफ दौड़ाई। उसके दिमाग से लाली की छवि एकदम से बदलकर मुर्गी की टाँग में समा गयी। घर आके उसने जल्दी से बाइक घर में घुसेड़ी और छत पर चला गया। मैं उसका जिग्री दोस्त हूँ ऐसा वो अक्सर कहता रहता। लेकिन ऐसे मौकों पर वो छत पर भाग जाता। लाली रामदीन टांक की एक लौती लड़की थी। जिसे इम्पैस करने के लिए वो भाई को दहेज में मिली नई नवेली बाइक जबरन दिखाने ले गया था। उसने मुझे ये बताया था पर उसके चेहरे का पसीना कुछ और बयाँ कर रहा था। क्या हुआ मैंने पूछा, कुछ नहीं उसने कहा और गली के छोर पर देखने लगा। ऐसा बदहवास मैंने उसे इससे पहले कभी नहीं देखा था। हमारा मोहल्ला उस वक्त बामन बनियों का मोहल्ला हुआ करता था और गुलशन को सामने के मोहल्ले की लाली पसंद आई थी वो मोहल्ला जहाँ न जाने के लिए हमारे घरवालों सख्त हिदायत दे रखी थी। पर ये लड़कपन का पहला प्यार था सुबह वह अपने मुर्गे-मु्र्गियों को दाना डालने के लिए बाहर निकलती थी यही वक्त चुना था उसने। मुझे पता था ये बवाल तो होना ही एक ना एक दिन। बामन का लड़का और चमारों की लड़की को ..। मोहल्ले की नाक नहीं कट जाएगी। गली के छोर से आवाजे आनी शुरु हुई। 
यही गली है चाचा..यही भागा था वो लोंडा। ढ़ँढो यहीं होगा। वो रा चाचा. वो रा. छत पे छुपे गुलशन पर उनमें से एक की नज़र पड़ी। गुलशन भागा। मुझे पता था लाली के चक्कर में ये तगड़ा फँसेगा एक दिन। पर नहीं पता था कि वो दिन इतनी जल्दी आ जाएगा। ये तो शर्मा का घर है। उस समय जीने का दरवाजा बाहर की ओर था खींच कर लाने में कोई तकलीफ नहीं हुई थी उन्हें। तबियत से धुलाई की गई थी। मैं अच्छी दोस्ती का फर्ज निभा दूर से देख भर रहा था ये सब। मैं भागा आंटी गुलशन को वो लोग पीट रहे हैं इतने में मोहल्ला इकट्टा हो गया। साले उसकी टाँग तोड़ के भाग आया। रुकता तब बताते। बात कुछ नहीं थी पर बहुत बड़ी थी। लाली का सुंदर चेहरा उसके चाचा के चाँटों ने धुमिल कर दिया था और उसकी जगह मुर्गी की टूटी टाँग घूम रही थी। उस दिन के बाद गुलशन कभी उस सड़क से नहीं गुजरा। उसने छत से देखा लाली का भाई दाँत में फँसा लैग पीस का कतरा निकालने में व्यस्त था। लाली नीचे माचिस की तीली खोजने गयी हुई थी। मैं दोस्त की पिटाई पर पहले खौफ़ में था पर अब अंदर ही अंदर हँस रहा था कि साले मुर्गी की टाँग टूटने पर तेरा मुँह सुजा दिया उन लोगों ने। अगर मैं बता दूँ कि तून लाली का मुँह चुमा हुआ है तो। मजा आ जाएगा। गुलशन ने उस दिन के बाद लाली के बारे में मुझसे कोई बात नहीं की। कॉलेज में आकर एक दोस्त ने कहा कि लड़कपन का प्यार भी कोई प्यार होता है। हा हा हा

लप्रैक ऑन द गैंग ऑफ बासेपुर - विनीत कु्मार

छोड़ दो न रागिनी. इसके लिए प्लैटिनम टिकट लेने की क्या जरुरत है? फिल्म में तो ऐसा कुछ है भी नहीं कि इस सीट की जरुरत होगी. दो-चार ही तो ऐसी सीन है, स्कीप कर जाएंगे. उसके लिए 140 रुपये ज्यादा देने की क्या जरुरत है ? ओह कम ऑन रघु. लोग बता रहे हैं कि अनुराग की देवडी में हीरोईन गद्दा लेकर खेत जाती है, इसे देखने के लिए घर से गद्दा लेकर जाना होगा और तुम्हें प्लेटिनम टिकट में ही दिक्कत हो रही है..बकवास करते हैं सब. अच्छा सुनो, जब गद्दा ही लेकर..तो छोड़ देते हैं न ये फिल्म..मेरा मतलब है घर पर ही रहते हैं..हां,हां खूब समझती हो तुम्हारा घर पर रहना. लेकिन क्या पता, तुम्हारे साथ में दिल्ली में मेरी ये आखिरी फिल्म हो..मोतिहारी में हम थोड़े ही न जाएंगे सिनेमा..सीट पर तो बैठ जाएंगे पर हाथ कहां रखेंगे रघु ? लेकिन मैं तुमसे नाराज हूं रागिनी. तुमने इस फिल्म को देखने से पहले ही डिमीन कर दिया. क्या सिर्फ यही है सिनेमा में ? सत्ता के भीतर की बनती नाजायज सत्ता का जिक्र नहीं है..पीयूष मिश्रा, स्नेहा खानवलकर के संगीत को ऐसे देखोगी सिर्फ गद्द तक समेटकर ? तब तो बहसतलब में वरुण की बात से बहुत एम्प्रेस हो गई थी और आज सिर्फ गद्दा.. छीः, आज मुझे अफसोस हो रहा है ये कहने में कि तुम वह लड़की हो जिसके साथ हमने गॉडफादर,सत्या, एनॉनिमस देखी..सुबह तुमने खराब कर दी रागिनी तुमने..ओह रघु,मैं डिमीन नहीं कर रही. मैंने तो ऐसा इसलिए कहा कि तुम थोड़े एक्साइटेड हो, पैम्प करने के लिए बस. अनुराग और उसके काम को मैं बिग सेंस में देखती हूं और इस फिल्म को भी,डॉन्ट वी पैनिक प्लीज..अनुराग ने ये फिल्म हम कपल के बीच दरार पैदा करने के लिए थोड़े ही न बनायी है ?ऐ रघु, एक बार देखो न मेरी तरफ, अपनी वूमनिया की तरफ..तुम फील करो न कि तुम्हारी रागिनी मोतिहारी से विदा होकर सीवान जाएगी तो कैसी दिखेगी ? अलगनी पर टंगे मानपुर,गया के गमछे से पल्लू बनाकर किनारे को बीच की दांत से दबा लिए..

बुधवार, 20 जून 2012

लप्रेक,विद हैप्पी एंडिंग


चायवाले ने उनसे बिना पूछे ही कांच के गिलास में दो चाय बढ़ा दिए थे.अरे नहीं माधो, रागिनी अब अफसर बन गयी है,आज सीसीडी में कॉफी पिलाएगी कॉफी. तू आज रहने दे. माधो को 12 रुपये की बिक्री की चिंता नहीं थी..हुलसकर कहा. अच्छा माने इहौ अफसर बिटिया. वाह भइया, हमरा चाय पीके मैडमजी अफसर बन गई है, इससे खुश की बात औ क्या हो सकता है..अच्छा तो है, एक-एक करके सब हमरी चाय पीके धीरे-धीरे सीसीडी में घुस जाते हैं. औ तुमरा क्या हुआ भइया, तुम कब घुसोगो सीसीडी में ? रागिनी के यूपीएससी क्वालिफाई होने की खुशी के बीच माधो का ये सवाल इतनी तेजी से घुलकर उदासी में तब्दील हो जाएगी,रघु इसके लिए तैयार न था..रागिनी माहौल को हल्का करना चाहती थी. अरे माधो भइया, आज तुम भी चलो न हमारे साथ सीसीडी. हम..धत्त मैडम. हम आपदोनों के बीच जाकर क्या करेंगे,उहां आप जाइए,आराम से सोफा में धसिए औ रघु भइया से पूछ-पूछके शक्कर डालिए औ काफी बनाइए..तो तुम यहां क्या करते थे हमारे बीच ? हियां ? हियां चाय ढारते थे औ रघु भइया और आपकी आंखों के बीच की आवाजाही देखते थे..पवन चक्की जैसी फुक्क-फुक्क आती-जाती नजरें, सैइकिल जैसी टकरातें नजरे देखते थे और भीतरे-भीतर आशीष देते थे कि दुनहुं का एके साथ कुछ हो जाए. ओह माधो भइया,कमऑन..अब तुम भी कविया गए. काहे, पिछला चार महीना से रेनु,निराला,शमशेर का खिस्सा-चर्चा करके हमरा भेजा निचोड़ती थी दुनहुं मिलके त उस समय नहीं समझ आता था कि माधो भइया को कुछ बुझाता है भी कि नहीं. हम तुमको बहुत मिस्स करेंगे माधो भइया. चलोगे हमारे साथ जहां पोस्टिंग होगी? हमको छोडिए रघु भइया को लेले जाइए. उ आपके बिना तैयारी करेंगे..हहरके मर जाएंगे इ मुकर्जीनगर के जंगला में.क्यों रघु,तुम क्यों चुप्प हो? कुछ नहीं रागिनी,सोच रहा था तुमने आज पहली बार मुझसे गिफ्ट मांगी है, क्या दूं ? अच्छा, तुम..तुम मुझे माधो भइया की इस दूकान का एक टुकड़ा दे दोगे, सरकारी क्वार्टर की ड्राइंगरुम में बहुत खूबसूरत लगेगी. है न. हमारे रोज मिलने की जमीन,सपने बुनने की जमीन और माधो भइया को पकाने की जमीन..

लप्रेक विद गिल्ट

फेंक दो न रागिनी इस गाइडबुक को ? क्या करोगी रखकर ? तुम्हें नहीं पता कि एन्ड्रायड फोन को कैसे हैंडल करते हैं,वेवजह सामान बढ़ाने से क्या फायदा ? नहीं रघु,इसे अपने पास रखते हैं. सोचो तो सही,मोबाईल बनानेवाली कंपनी अपने मोबाईल को कितना बेशकीमती समझती है? हम कहते हैं हमारी जिंदगी दुनिया की सबसे कीमती चीज है लेकिन हमारे पास कोई भी ऐसी गाइडबुक है जिसे पढ़कर हम समझ बढ़ा सकें कि हम इसे कैसे चलाएं लेकिन देखो मोबाईल की है. ओह रागिनी,तुम तो राजपाल यादव जैसी बातें करने लगी. मतलब ? मतलब ये कि राजपाल यादव ने चुटकुला सुनाया था एक बार- एक ग्राहक से केलेवाले से कहा. मैं रिलांयस से ज्यादा अमीर हूं. ग्राहक हंस दिया. केलेवाले ने कहा- अच्छा बता मेरा एक केला कितने का ? ग्राहक ने कहा- दो रुपये का. और रिलांयस की एक कॉल ? चालीस पैसे की. तो बता कौन अमीर ज्यादा हुआ ? रागिनी तुम यूपीएससी के बाद इन दिनों कल्चरल मैटिरियलिज्म पढ़ने लगी हो क्या ? हां रघु..दुनिया के बारे में अपनी समझ बढ़ाने के लिए. एक तरह से कहो तो सालों से विचारधारों और सामाजिक प्रतिबद्धता के तर्कों को झूठलाने के लिए. उससे दूर भागने के लिए.अपने उन वादों को तोड़ने के लिए कि हम दो सलवार सूट में काम चलाएंगे लेकिन दुनियाभर की किताबें पढ़ेंगे.पीवीआर नहीं जाएंगे,पायरेटेड सीडी देखेंगे. पर क्यों रागिनी? इसलिए रघु कि ब्यूरोक्रेसी की दुनिया हमें ऐसा करने नहीं देगी, अब शो ऑफ ही हमारी मजबूरी और विचारधारा होगी रघु. कन्ज्यूम करने की आदत ही हमारी शान होगी. सॉरी ग्राम्शी,मैंने तुम्हें सिर्फ सिलेबस की तरह पढ़ा,जीवन में ला न सकी.

लप्रेक, ए लिटिल विट पॉलिटिकल - विनीत कु्मार

जी न्यूज की हेडर देखकर पोल्टू दा ने दांत पीसने शुरु कर दिए थे. दो जूता मारो स्साले इन चैनलों को. अभी से ही लिख रहा है महामहिम प्रणव. सुलक्षणा अचानक से उठकर चल दी थी. पोल्टू दा एकदम से खुश हो गए. सोचा, सुलक्षणा को ये हेडर इतनी बुरी लगी कि वो इसे देख भी नहीं पा रही है. टाटा स्काई रिमोट की लाल बटन को दांत पीसते हुए दबाया और सुलक्षणा की तरफ बढे. आमिओ देखते पारि नाय..सुलक्षणा को टाइट हग देते हुए जोर से किस्स किया. आज बहुत प्यार आ रहा था सुलक्षणा पर..औऱ वैसे भी हम जिस बात को पसंद नहीं करते, पार्टनर भी न करे तो प्यार दुगुना हो जाता है...अपने कमरे में आकर सुलक्षणा ने आठ साल पुरानी अटैची निकाल ली थी..रंगीन अखबार इतिहास के गडढे में धंसकर मटमैला हो गया था. आनंद बाजार का शहर/आसपास का पन्ना निकाला. उसने अभी तक पूरा अखबार ही रखा था, उसकी कतरन भर नहीं. जूड़े में बेली का गजरा, लाल पाढ़वाली छपा साड़ी, बड़ी सी बिंदी, पैरों में घुंघरु, चेहरे पर मुस्कान और बंगाल के बड़े नेता प्रणव दा से पुरस्कार लेती हुई. सुलक्षणा उस तस्वीर को फिर से चूमती है. वो खुश होती है कि जिस प्रणव दा ने उसे आज से आठ साल पहले पुरस्कार दिया, अब राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. जान, एटा देख न एकटू, आमार प्रणव दा..पोल्टू दा का इंटरवल के बाद फिर से दांत पीसना जारी था.

रविवार, 17 जून 2012

लप्रेक विद दोषारोपण


बांह,गला,कमर,घुटने..एक के बाद एक टेलर इतनी तेजी से इंचटेप रागिनी पर टच करता जा रहा था कि जैसे वो उसके कुर्ते की नाप लेने के बजाय खचर-खचर कपड़े काट रहा हो. काउंटर से थोड़ी ही दूर पर खड़ा रघु जो पिछले पांच मिनट तक काला-खट्टा में रमा हुआ था,गोले जमीन पर चू जाने के बावजूद भी टंठल को चूसे जा रहा था, एकटक रागिनी को देख रहा था. अब वो मल्कागंज की इस सड़ियल सी गली में क्यों आएगी कुर्ते की नाप देने ? इतने नौकर-चाकर होंगे कि जरुरत ही नहीं पड़ेगी. ओए रघु,कहां खो गया तू ? रागिनी की आवाज से रघु अकचका गया और फिर डिजाईन बुक पर नजरें टिका दी..नहीं,चौड़े गले का कुर्ता अब रागिनी के लिए सही नहीं होगा. क्यों न इस बार उसे नेहरु कट ट्राय करनी चाहिए? उसने डिजाइन का वो पन्ना मोड दिया और आगे बढ़ गया. वैसे सिद्धि जैसे कुर्ते पहनती है,वो भी बहुत प्यारे लगेंगे.उस पन्ने को भी मोड़कर आगे बढ़ गया.कुछ और ट्राय किया जाए..बढ़ता गया-बढ़ता. उसे पता तक नहीं चला कि कब पीछे खड़ी रागिनी उसकी इस हरकत पर नजरें टिकायी है. वाह बेटाजी, अभी तक तो तुम जब भी टेलर आए मेरे साथ,दस फिट की दूरी पर खड़े नजर आते थे.लाज आती थी तुम्हें यहां खड़े होने में और अब मैं दिल्ली से जा रही हूं तो खड़े क्या डिजाइन तक चुनने लगे. सही जा रहे हो रघु. मुझे नहीं लगता मोतिहारी जाकर ज्वायन करते-करते तुम ये भी याद रखोगे कि रागिनी नाम की कोई लड़की मेरी जिंदगी में थी.

ताई

ताई की डैथ मेरी माँ के मरने के एक महीने के भीतर ही हो गयी थी। वो बाथरूम में नहाते वक्त मृत पायी गयी थी मेरी ताई की लड़की ने मुझे आवाज़ दी थी मैं ही अपनी गोद में उनके निरवस्त्र शरीर को बाथरूम से उठाकर कमरे में लाया था सविता पास खड़ी रो रही थी और मैं ताई की आँखों के नीचे एक लंबी धार के दाग को देख रहा था। उनकी आँखे पूरी तरह बंद नहीं थीं थोड़ी खुली हुई थी जिसकी वजह से मुझे उनके शरीर में जान होने का भ्रम बार बार हो रहा था। मैं पहला शख्स था जो बाथरूम में उनके दीवार से पीठ टिकाए बैठे शरीर को उठा कर लाया था वह इमेज काफी लंबे समय तक मेरे जहन में ताई के मरने के बाद भी जिंदा रही। ताई ने एक मग पानी भी अपने शरीर पर नहीं ड़ाला था। उनका शरीर बिल्कुल सूखा था सविता का कहना था कि ताई आधे घंटे से बाथरूम में ही थीं। कहते हैं उन्हें हर्ट अटैक आया था। सविता ने मुझे बताया था कि कोई बात तो थी नहीं बस पापा(ताऊ) से कहा-सुनी हुई थी और उन्होंने ने थोड़ा पीटा था बस उसके बाद (मम्मी)ताई नहाने चली गई पर सविता का कहना था कि ऐसा पहली बार था कि पापा के मारने पर भी मम्मी रोई नहीं थी और सीधा बाथरूम में नहाने चली गई थी। लोगो का कहना है कि ताई हमारे यहाँ की सबसे भली महिला थी अभी पच्चीस दिन पहले मेरी माँ की डैथ पर लोगों ने ऐसा ही कहा था। लेकिन मुझे लगा कि मरने और कहने के बीच में बहुत कुछ अनकहा रह गया।

शनिवार, 2 जून 2012

उंगलियाँ


यह लघुकथा जिसे विनीत कुमार लघु प्रेम कथा कहना ज्यादा पसंद करते हैं हमारे लिए विनीत ने हमारे फेसबुक समूह के लिए लिखी है। इस समूह के लिए यह उनकी पहली लघु कथा है। इस कथा का शीर्षक उनके द्वारा हमें अभी उपलब्ध नहीं कराया गया था सो मैंने ही इसका शीर्षक उंगलियाँ दे दिया। जिसमें बाद में संपादन की गुँजाइश है। खैर विनीत की यह लघु कथा भारत बंद के दौरान एक जोड़े की मनःस्थिति का ही नहीं बल्कि उस मनःस्थिति से उपजे उनके अपने अनुभव का भी बयान है।- मॉडरेटर

मयूर विहार फेज-1 स्टेशन पर प्रेमी जोड़े के आपस में गुंथे हाथ उस धक्का-मुक्की में जाने कब तितर-बितर हो गए, उन्हें भी पता नहीं चला. जिन उंगलियों को वो मिनटों वो नाखून से जड़ और जड़ से नाखून तक सहला रहा था और बीच-बीच में मूंगे की अंगूठी पर ठिठक जाता, वे उंगलियां मुठ्ठी बंधकर चीनी के मरीजों,अधेड़ फ्रस्टू अंकलों को धकिआने में मजबूरन व्यस्त हो गयी. इधर उसकी अरबी जैसी मोटी-मोटी उंगलियां अचानक से बेजान हो गयी.आखिर जींस की पॉकेट में हाथ डालने के अलावे चारा क्या था. भारत बंद का सबसे गहरा असर रागिनी और रघु को ही हुआ था. मेट्रो भी गजब घिनौनी चीज है न. जिसे हम छूना चाहते हैं,छूते रहना चाहते हैं वो छूट जाते हैं और जिन्हें छूना क्या,उसके पास से गुजरनेवाली हवा से भी परहेज करते हैं,वो है कि लसड़ाने लग जाता है..यमुना बैंक,इन्द्रप्रस्थ,मंडी हाउस,बारहखंभा..हां उंगलियों में फिर से जान आने लगी थी.वो जींस की पैंट से उछलकर फिर से उनमें गूंथने लगी थी,उसे स्पर्श नहीं, नरमी चाहिए थी,बंदी की झुलसन से मुक्त होने के लिए,सांस लेने के लिए. राजीव चौक तक आते-आते मयूर विहार फेज-1 की तरह अरबी सी उंगलियां,भतिया ककड़ी सी उंगलियां एकाकार होने लगी थी. स्टेशन पर दर्जनों युगल इसी मुद्रा में मौजूद नजर आए बल्कि रोज से कहीं ज्यादा. आ मेट्रो स्टेशन इस मामले में ज्यादा उदार नजर आयी. डीटीसी,ओटो और कारों में टुकड़ों-टुकड़ों का स्पर्श यहां आकर बहुमत हो गया था.